कुल गीत

नवल उत्थान का मन्दिर, ललित विज्ञान का मन्दिर।
विनय विद्या का निष्ठा का, चरित्र निर्माण का मन्दिर॥
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर॥2॥
इन्दिरा जी का पावन तप, ये उनकी किर्ति का आलय,
सहज द्रायन दृढ़ता का परिचायक, ये नारी शक्ति का गायक।
भगवती वीणापाणि के, चतुर्दिक ज्ञान का मन्दिर,
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर...
प्रगतिपुरम मे सुशोभित है, ये अनुपम विद्या का आलय,
कला वाणिज्य का वाहक, ये संस्कृति का है उन्नायक।
मान ये रायबरेली का, सतत सम्मान का मन्दिर,
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर...
ये जायसी की तपोभूमि, यहीं जन्मा था पद्मावत,
ये सूफी ज्ञान, शिक्षा का, प्रेम का था अद्भूत गायक।
ये शबरी और अहिल्या के, चरम उत्थान का मन्दिर,
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर...
भाव बुद्धि मन होते विकसित यहाँ हमारे
मूल्य सभ्यता संस्कृति के हों मुखरित सारे
सीखा पाठ जहाँ हमने समता, ममता का
सहिष्णुता सहयोग, वेदना और विवेक का
है डलमऊ की यही धरती, द्विवेदी जी को जो भायी,
इसी गढ़ में निराला के, छदों ने ली अंगड़ाई।
ये मुंशीगंज के वीरों के, सहज बलिदान का मन्दिर,
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर...
सुदूर गाँवों के अंचल से, यहाँ आती हैं बालाएँ,
दया करुणा की प्रज्ञा की, यहाँ चलती हैं कक्षाएँ।
अतीत के गौरव का गायक, ये अनुसंधान का मन्दिर,
हमारा महाविद्यालय, अवध की शान का मन्दिर...